आओ शब्दों को जानें!

किसी भी तार्किक शब्द या विषय पर तर्क - वितर्क करना बौद्धिक वर्ग का ख़ास शगल है, जिसके सहारे हम उस विषय के अन्तस् तक पहुँच पाते हैं।ये तर्क - वितर्क, गवेषणा और अनुसंधान की चर्चनाएँ कहीं भी दृष्टिगत हो सकती हैं। स्कूल, कॉलेज, कार्यालय, घर - बार, सड़क, गली, मौ‍हल्ला, ब्लॉग, ट्विटर या फेस बुक पर..... 
कहीं भी। किसी भी विषय पर आयोजित हो सकती है.. बड़ी व्यापकता लिए, वर्ण से महाकाव्य पर्यन्त, योग से भोग, स्थूल से सूक्ष्म, भौतिकता से आध्यात्मिकता पर्यन्त, हर विषय पर तर्कनाओं का अंबार लगा हुआ है। ऎसा ही आज कुछ देखते - पढ़ते ध्यान में आया तो अपने आप को लिखने से रोक नहीं पाया। श्यामसुंदर नम्र के शब्दों में..... 
⤵️आओ बहस करें 
⤵️सिद्धान्तों का तहस - नहस करें 
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विचारणीय: नौकरानी, इंद्राणी, भवानी, आचार्यानी, सेठानी, देवरानी, जेठानी....... आदि समरूप प्रतीत होने वाले शब्द जिनका उत्पत्ति स्थल (व्युत्पत्ति) अलग-अलग तौर पर समझना आवश्यक है, अन्यथा इनका प्रयोग बहुत ग़लत तरीके से होना आमतौर पर देखा जा सकता है। 

 नौकर /नौकरानी:-  हिंदी भाषा में बहु प्रयुक्त शब्द है। नौकर शब्द मूलतः मंगोलियाई भाषा का है, इसका मूल नुकुर /नोकोर है। इस शब्द की व्याप्ति समूचे आल्ताइक भाषा परिवार में है और सभी में इसका आशय सखा, बंधु, यौद्धा, या अंगरक्षक से लिया जाता है। इस शब्द का प्रयोग अन्य भाषाओं में भी हुआ है, जैसा कि तातार भाषा में य‍ह 'नुगर' है। उज्बेकी में यही शब्द 'नागार' हो गया, जिसका अर्थ - निजी सहायक है।

तुर्की भाषा में यह 'नावकर' या 'नुकुर' है, जिसमें सेवक वाला भाव प्रतीत होता है। इस शब्द का सर्वाधिक प्रयोग एवं प्रचार प्रसार चंगेज खां के सामरिक अभियानों के दौरान हुआ, चंगेज खां की अधीनता स्वीकार करने वाले सरदारों को ' नुकुर' का दर्जा मिला। यह लगभग अरबी के गुलाम और मामलुकों जैसा मामला था जो कि अधीनस्थ होते हुए भी ऊंचे ओहदे पर थे। भारतीय 'दास' शब्द को इसी कड़ी में देखा जा सकता है। कालांतर में फारसी में आकर यह नुकुर या नोकोर ही नौकर बन गया। तब से मित्र, यौद्धा, सहकारी, अंगरक्षक व सहचर की अर्थवत्ता वाला यह शब्द सिर्फ़ सेवक, दास, अनुचर आदि शब्दों के अर्थ में रूढ़ हो गया। जिसमें कदाचित् असम्मान /अनादर का भाव प्रकट होने लग गया। हिंदी में आकर यह शब्द विशेषण से मुक्त हो कर संज्ञा के रूप में प्रयुक्त होने लग गया। 
हिंदी के शब्द भंडार में विदेशज शब्‍दों की अभिवृद्धि के साथ ही संकर शब्‍दों का प्रचलन प्रारंभ हुआ इसी श्रृंखला  में इस शब्द के साथ हिंदी का संबंध वाची 'ई' प्रत्यय लगाकर नौकर+ई =नौकरी शब्द निष्पन्न हुआ। 'नौकरी' आज आजीविका का पर्याय है, जबकि नौकर को दास या सेवाकर्मी का दर्जा प्राप्त है। परंतु नौकरशाही, नौकरशाह, या नौकरपेशा शब्दों में इस शब्द का माहात्म्य अब भी संरक्षित और सुरक्षित है। 

परंतु 'नौकर' शब्द पूर्णतः सेवक, भृत्य, प्रेष्य, अनुचर खिदमतगार, सर्वेंट या वेतन आदि पर काम करने वाला कर्मचारी, किसी कार्यालय का कर्म चारी (प्रयोग और संदर्भ स्थलों के अनुसार) इन अर्थों का वाचक और वाहक हो गया। शब्द संरचना के आधार पर यह शब्द पुंल्लिंग वाची है। 
अब हमें इसी शब्द के समानार्थी स्त्रीत्व की विवक्षा हो तो हम इस नौकर शब्द से हिंदी का स्त्रीवाचक 'आनी' प्रत्यय जोड़कर नौकर+आनी =नौकरानी (फारसी +हिंदी) इस स्त्रीवाचक शब्द का प्रयोग करतें हैं, जिसका अभिधेयार्थ पैसा लेकर गृहस्थी का काम करने वाली या देखभाल करने वाली स्त्री, सेविका, भृत्या, दासी या अनुचरी आदि है।
नौकर व नौकरानी शब्दों का प्रयोग सेवक या सेविका इन भारतीय शब्दों के पर्याय के रूप में किया जाने लगा है, जोकि कतई उचित नहीं है, क्योंकि ये दोनों शब्द वृत्ति आजीविका या पेशे से जुड़े हुए हैं, जबकि सेवक या सेविका शब्दों में गुरुत्ता है, सेवा का भाव है, जनकल्याण और परहित की भावना है (सेवाधर्मःपरमगहनो योगीनामप्गम्य) 
अस्तु, भ्रमवशात् नौकर शब्द के पीछे स्त्रीत्व की विवक्षा में आन्(आनुक्) और ङीष्(ई) प्रत्यय जोड़कर नौकरानी शब्द की व्युत्पत्ति मानना अव्याकरणीय व अनुचित है।क्योंकि हिंदी भाषा में तो संकर शब्दों का प्रचलन है, जहां किसी अन्य भाषा के शब्दों में किसी अन्य भाषा का प्रत्यय लगाकर कोई नया शब्द बनाया जा सकता है, परंतु संस्कृत में एसी कोई परम्परा नहीं है। केवल ध्वनिसाम्य के आधार पर कोई प्रत्यय जोड़ना सम्यक् प्रतीत नहीं होता। क्योंकि नौकर(फारसी शब्द) के साथ संस्कृत का आनुक्
 व ङीष् प्रत्यय किसी भी दृष्टि से संगत प्रतीत नहीं होता है। 
पुनश्च जेठानी, देवरानी, सेठानी, मिहतरानी/मेहतरानी, चौधरानी, खतरानी आदि अनेक शब्द जो कि संस्कृतेतर(बहुत लंबी श्रंखला है) भाषाओं के शब्दों से संस्कृत के आनुक् और ङीष् प्रत्यय जोडना अनुचित है।
हाँ इंद्राणी (इंद्र की स्त्री) वरुणानी (वरुण की स्त्री) भवानी (भव, शिव की स्त्री) शर्वाणी (शर्व की स्त्री) रुद्राणी (रुद्र की स्त्री) मृडानी(मृड की स्त्री) आचार्यानी (आचार्य की स्त्री) मातुलानी (मातुल, मामा की स्त्री) आदि स्त्री वाची शब्दों व कुछ भिन्‍न अर्थों में भी यह प्रत्‍यय जुड़ता है, जैसे कि हीमानी (हिम् शब्द से महत् अर्थ में) यवनानी (शुद्र यव) तथा क्षत्रियाणी(क्षत्रिय की पत्नी नहीं बल्कि क्षत्रिय जाति की स्त्री) आदि शब्दों में आनुक् व ङीष् प्रत्यय का स्वागत है।
पुनश्च लोक में नौकरानी शब्द से प्रथम दृष्टया (नौकर की स्त्री या पत्नी वाला अर्थ ग्राह्य नहीं है, अपितु नौकर कर्म से संबद्ध कार्य करने वाली स्त्री (महिला विशेष) का बोध होता है। 
इसी तरह सेठानी (सेठ +आनी =सेठानी) भी सामान्यतःसेठ की पत्नी के लिए प्रयुक्त नहीं होता(हाँ प्रसंग वशात् लोक व्यवहार में सेठ की पत्नी वाला अर्थ ग्राह्य है, पर व्याकरण की प्रक्रिया में धनाढ्य या वणिक् कर्म करने वाली स्त्री हेतु प्रयुक्त होता है) , 
ध्यान रहे हिंदी भाषा की प्रकृति के अनुसार इन सभी शब्दों (जिनका विवेचन उपर किया गया है) में आनी प्रत्‍यय माना जाता है।

परन्तु मूल प्रश्न अभी भी जारी है.... क्रमशः

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