शब्द-संधान 2

अनुराग शब्द अनु उपसर्ग से राग (मूलतः रञ्ज् +घञ्)शब्द लगने से निष्पन्न हुआ है,जिसके व्युत्पत्ति परक अर्र्थ-लालिमा,निष्ठा, स्नेह आदि हैं।

वैयक्तिक रूप से किसी व्यक्ति के आचरण, व्यवहार, योग्यता देखने से हमारे मन में जो रंगत चढ़ती है उसे राग कहते हैं।
अनु =पीछे,राग=रंजन.... होना ही अनुराग है।

वस्तुतः किसी बात या किसी अनुकूल व्यक्ति के साथ सात्त्विक भाव से मन जुड़ना ही उसके प्रति होने वाला अनुराग है।

अनुराग का विलोम विराग है।

अनुराग प्रायःसकारात्मकता का सूचक है।यह व्यक्तियों के अतिरिक्त साहित्य, संगीत, चित्रकला आदि साहित्य - विधाओं से भी हो सकता है।
(यह आवश्यक नहीं कि जिसके प्रति हमारा अनुराग हो वह हमसे अनुराग करता हो या करे)
अनुराग का ही समार्थक,अनुरक्ति है ;अनुराग करने वाले को अनुरागी(पुंल्लिंग) कहा जाता है,स्त्रीलिंग में अनुरागिणी होगा।
अनुरंजक प्रसन्न करने वाले या संतुष्ट करने वाले को कहा जाता है।
अनुरंजन भाववाचक शब्द है,जिसका अर्थ संतुष्ट करना या प्रसन्न करना होता है।
अनुरक्त उसे कहा जाएगा जिसे राग हो चुका हो ।यह भूतकालीन कृदन्त है (प्रसन्न, संतुष्ट, निष्ठावान्)

के. आर. महिया
#शब्दसंधान
#हिन्दी_वृहद्_व्याकरणकोश_अंश

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