नुक़्ते का प्रयोग
हिन्दी भाषा में नुक़्ते का प्रयोग किन शब्दों के साथ होना चाहिए? (विद्वान् अधिवक्ता एवं परम मित्र दीपक जी शर्मा एवं राहुल पारीक के प्रश्न का उत्तर)
हिन्दी भाषा में बहु प्रयुक्त अरबी एवं फ़ारसी भाषा के शब्दों को हिन्दी भाषा की अपनी शब्द - संपदा से पृथक् दिखाने के लिए देवनागरी वर्णमाला के पाँच वर्णों (#क़ ख़ग़ज़फ़) के साथ नुक़्ता लगाने की परंपरा शुरू की गई थीं)इस कहानी को समझने के लिए हमें हिन्दी भाषा के शब्द - भंडार के विषय में जानना होगा।
हिन्दी भाषा की शब्द - संपदा में - तत्सम, तद्भव, देशज, विदेशज और संकर पाँच प्रकार के शब्दों का इस्तेमाल होता है।
तत्सम शब्दावली(संस्कृत - शब्द) ही हिन्दी भाषा की आत्मा है। इन तत्सम शब्दों में हिन्दी ने अपनी प्रकृति के अनुरूप रूपांतरण करके अपनाया, उन शब्दों को हम तद्भव शब्द कहते हैं।
यथा - हस्त से हाथ, दधि से दही, भिक्षा से भीख आदि। कालांतर में देशज शब्दों (कंजर, कुड़ा,खटपट, गाड़ी, टाँग, बकबक, पेड़, पिल्ला, हक्का-बक्का आदि) का प्रचलन भी हमारी हिन्दी में होने लगा।
हिन्दी भाषा की शब्द - यात्रा पर यहीं विराम नहीं लगा अपितु जब हमारा सम्पर्क बाहरी सभ्यताओं और संस्कृतियों से
हुआ तो हिन्दी भाषा ने खुले मन से बाहरी भाषाओं के शब्दों को भी अपना लिया, जिन्हें हम विदेशज (अरबी, फ़ारसी, तुर्की, अंग्रेजी, पश्तो, यूनानी, रूसी, स्पेनिश, जापानी, चीनी आदि भाषाओं के शब्द) शब्द कहते हैं।
इस प्रक्रिया में सबसे अधिक शब्द हिन्दी ने उर्दू, अरबी एवं फ़ारसी भाषा से लिए जिनका प्रयोग हम दैनंदिन जीवन में करते हैं। जब हिन्दी में इनका प्रयोग किया ही जा रहा है तो फिर यह उसी तरह से क्यों ना हो जिस तरह अपने मूल रूप में है । किसी भाषा को मौलिकता के साथ ग्रहण करने एवं उसके प्रयोग से उसकी मौलिकता तो बनी ही रहती है साथ ही भाषागत सौन्दर्य में भी अभिवृद्धि होती है।
हमें इन शब्दों के सही प्रयोग तथा शुद्ध लेखन से परिचित होना आवश्यक है, अन्यथा अर्थ का अनर्थ हो जाता है।
आज हम उन्हीं शब्दों की चर्चा करेंगे जिन शब्दों के साथ नुक़्ते का प्रयोग होना ही चाहिए।
नुक़्ते का शाब्दिक अर्थ है - बिन्दु, सिफर, सुन्ना, धब्बा, या अरबी, फ़ारसी भाषा के शब्दों के नीचे लगाई जाने वाली बिंदी..आदि है।
यद्यपि यह सवाल बहुत ज्यादा उलझा हुआ है, वैयाकरण इस विषय पर एकमत नहीं हैं।
आप चाहे जैसा प्रयोग करें आपकी भाषा पर नुक़्ताचीनी करने वाले सज्जन मिल ही जाएंगे।
(इस संदर्भ में संपूर्ण जानकारियाँ हिन्दी वृहद् व्याकरणकोश में दी गई है। )
हिन्दी भाषा में वार्तनिक शुद्धि हेतु हमें शब्दों की प्रामाणिकता और इनके शुद्धीकरण पर ध्यान देना ज़रूरी है। किसी भी नियम की स्वीकार्यता तभी सुनिश्चित की जा सकती है, जब सरकार और समाज दोनों इस दिशा में प्रयत्नशील हो।
एक उदाहरण देखिए - जिसमें नुक्ते का प्रयोग करने या न करने से वाक्य में कितना अंतर आ जाता है।यथा -
राम की जलील (शान - शौकत, प्रतिष्ठा, बड़ा) देखकर श्याम ने उसे ज़लील(अपमानित, बेइज्ज़त)किया।
आमतौर पर हम क़ानून(विधान) के स्थान पर कानून(चूल्हा) लिख देते हैं।
(न्यायालय कानून (चूल्हे) का नहीं, क़ानून (विधान) का रखवाला है।)
ज़रा (अल्प, थोड़ा, कम) के स्थान पर जरा (वृद्धावस्था) लिख देते हैं।
मुझे जरा सा नमक चाहिए (अर्थात् वृद्धावस्था का सा नमक) कितना अनर्थ हो जाता है।
ज़माना (समय, मुद्दत) जमाना (जमाने की क्रिया, दही जमाना)
(ज़माने की चिंता न किया करें, हाँ जमाने की ज़रूर कीजिए, सुबह खाने के काम आएगा)
ज़ीना (सीढ़ी) परंतु - जीना (ज़िन्दगी गुजारना)
(ज़ीने पर ध्यान से पैर रखिएगा, जीने पर नहीं।)
क़ालीन (बिछाने वाली) कालीन (काल संबंधी)
(बिछाने के लिए क़ालीन की आवश्यकता होती है, कालीन की नहीं)
ख़ुदा (भगवान्, अल्लाह) खुदा (खोदने की क्रिया)
(ख़ुदा से प्रार्थना किया कीजिए, खुदा से नहीं।)
ग़ौर (ध्यान देना,,, आप मेरी बात पर ग़ौर करें न कि गौर) गौर (शुभ्र वर्ण)
ख़ाना (दराज या जगह,,,, दवाख़ाना) खाना भोजन)
वस्तुओं को ख़ाने में रखने की आदत डालिए, खाने में रखना छोड़ दीजिए ।)
दफ़ा (धारा) दफा (दोहरान, बार)
(संविधान की दफा नहीं दफ़ा होती है)
मैं देखता हूँ आपलोग इन नुक़्ते वाले शब्दों का कितनी दफा अभ्यास करेंगे.....
के. आर. महिया
#शब्दसंधान
#हिन्दी_वृहद्_व्याकरणकोश_अंश
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वांछित अर्थ के लिए शब्दों का सही रूप में लिखा जाना आवश्यक है ,नुक़्ते के बिना शब्द शुद्ध रूप में लिखा ही नहीं जा सकता.
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